मीरा, राधा और महाभारत

मीरा मर गयी, राधा मर गयी
श्याम के आस देखते
पूरी सतयुग ही बीत गयी |

आकर्षक और हसमुख सूरत
अज्ञान की आग में महाभारत मच गयी |

देख धरोहर खून से सनी
अर्जुन दुःख से भर जाता था
मोह त्याग का पाठ पढ़ाकर
वो अर्जुन को बहकाता था |

ना समझाया, ना बतलाया,
ना उसने सही राह दिखाया,
जब पाण्डव अहंकार से चूर थे
तब ये मोह त्याग का पाठ उन्हें क्यों नहीं सिखाया |

लाखो खुनों की स्याही से सने
अध्याय गीता के है बने
सही-गलत सब अंधकार में
इंसानियत को बाँटते जाता था |

गर्व, महिमा, घमंड, लालच, मजबूरी देकर
ज्ञान का पाठ पढ़ाना चाहते हो.
होने देते हो दुश्कर्म इंसानियत में
समझाना क्या तुम चाहते हो
मैं अज्ञान हूँ, मान चूका हूँ
ज्ञान तुमसे चाह रहा हूँ |

सिसक भर भी प्यार मिले तो
मैं सत्य की राह चलूँगा,
पर पथ में कंकड़ – कांटे बिखेर कर
तुम उम्मीद झंझोरे जाते हो |

अंत जब निकट आ गया है
सोचो अब भी भगवान क्यों इंसान बनाता है.
इंसानों को यूँ तड़पते
देख उसे क्या मजा आता है ?

तुमसे बेहतर तो वो गांधी जी थे
अहिंसा का पाठ पढ़ाते थे,
इंसानियत के प्यार वो
विश्व भर परोपकार से फैलाते थे |

मैं हिन्दू, मुस्लमान या ईसाई में फर्क नही रखता
सब ही एक समान विध्वंशी है,

प्यार, मोहब्बत, परोपकार की भाषा
तो दूर दूर तक इनसे वंचित है |

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