बेवजह ताकत के जोश और जूनून में दुश्मन बन बैठे है…
दोस्त होते तो इंसानियत में सतरंगी रंग भर देते |
अज्ञान भीड़ ही तो राज-काज की एकमात्र ताकत है
न विचार में उसके ज्ञान है, ना वाणी में मधुरता है |
इक माचिस उसने तेरे सामने रख दी है
जिज्ञासा की उत्सुकता में, उसे अनुमान से तुमने भर दी है
जानते भी नहीं,
सोचते भी नहीं,
की ये अशांति का बीज क्यों और कब बोया गया |
बस अपने सहूलियत के हिसाब से
इतिहास को टटोले जा रहे है…
की “मैं” सही हो पाए…
मिले भी नहीं एक दूजे से
जानते नहीं,
पहचानते भी नहीं
अगर एक दूजे के साथ बैठ कर के…
चार किस्से कहानियां बाट पाते,
तो जान पाते कि कितने अलग
और कितने समान है हम |
किस बात का गुरुर और घमंड है ,
इन तारों सितारों से भरे ब्रह्माण्ड में
चींटी सामान भी नहीं है इंसान का वजूद |
