अफवाहों के ये जल्लाद है
झूठ फ़ैलाने के ये सहिंसा
पढ़ाई लिखाई में सबसे पीछे
सच को रौंदने में सबसे आगे
इंसानी वेष में तिरंगी भेड़िया
भारतमाता पे ये है कलंक
खून से सनी है इनके दामन
हर रोज नए वेष बदलते है
असमंजस इनकी ताकत है
अंधी भक्ति इनका हथियार है l
मूर्खो की सभा के राजा है
मूर्खो की स्पर्धा के विजेता है
प्यार इनकी परेशानी है
जनता की पीठ में छुरा भोंकने वाले
ये सब ही एक सामान अपराधी है
काश मैं भी भगत सिंह होता
संसद में एक बम लगवाता
इनको इनकी ऐंठ दिखाते
जनता के मन की बात बताता
विष का जलपान करते है
रक्षक नहीं भक्षक है ये
कम अक्कलो को समझ आते है
भारतमाता की रूह मर गई
क्या जो तूने इनको जनम दिया
क्यों काबिलियत को अपाहिज कर दिया
तूने इनका क्यूँ हनन ना मरन किया
इन दरिंदो की ये सभा में
सब त्रस्त रहते है
ना जाने ये सब बातें
क्यों नही इनको चुभते है
नाटक में इतने किरदार नहीं है
जितने इन्होने पाखण्ड किये है
कहने को तो नेता है
सच में तो अभिनेता है
लाखों अपनी जमीर बेचकर
तलवे इनके चाट रहे है
उपहार मिलेगा या रक्षा
समय की निगाहे ताक रही है
Sorry Mother Earth 🌎