ये देश है साहब।
सर्कस की तरह चलाओगे तो,
जनता को भी तमाशा देखने की आदत लग जाती है।
फिर तमाशा आप की भावनाओं का ही क्यों ना हो,
तमाशे से भुख तो नहीं, पर मन खूब भरता है।
बहुत खूब कहा था एक किरदार ने,
अंग्रेज़ भारत पर इतने वर्षो तक शाषन कैसे कर पाए,
ना भाषा आती था ,
ना भोजन का स्वाद आता था,
ना ही मौसम रास आता था,
पर तमाशा खूब रास आता था।
ब्राह्मण, धार्मिक संप्रदाय,और शासक सभी अपनी हठधर्मिता को बेचने के लिए तमाशे का इस्तेमाल करते हैं।
कमाल की नीति है,
हर ज़माने में,
हर ठिकाने पे,
काम करती है।