क्या सोचता है, क्या कर जाता,
क्या चाहता है, पर क्या है पाता |
यूँ तो मन का नखरा जैसे
सातवें आसमां पर है
आदतें पर तेरी जैसे
स्वाभिमानी अहम् सी है |
इस हेकड़ी को मिली है शय
आज बुदबुदा सा मन फूटा है
रातें आंखें नम कर
पूछता अपनी गलती का पता है |
अहम् को गहरी चोट लगी है
अब जाकर, मन पर मलहम लगा है |
जीवन के इस संघर्ष में
ख्वाइशें मेरी अनंत है
मेंरे स्वप्निल मन की मनसा
किसी और को नहीं
सिर्फ मुझे ही पता है |