भगवान बिकने शुरू हो गए है, दुकानों में
हस्तियां लगे हैं, त्योहारों की शोभा बढ़ाने में
ढम ढम नगाड़ा बजने लगा है, अमन को हटाने में
पांव नंगे चलने लगे है, भ्रम को रिझाने में
कतारों में खड़े है, ख़ज़ाने लेकर न जाने किसे रिझाने को
बारिश का पता नहीँ, ये चले है नदियों को भी मिटाने में
श्रद्धा का धंदा अब हो रहा है, घर घर में,
कैसे समझाए इन्हें,
अमन नहीं मिलता प्रकृति का दिल दुखाने से |