मृगतृष्णा के मोह में

सरल साधारण जीवनी मेरी
असमान्य है हर ख्याल मेरे
जिंदगी में कम में है ख़ुशी
जान पाये है आज अरमान मेरे

निराला मन है
मासूम से सपने
क्लेश द्वेष है
मन के अपने

भेद भाव है
घना अँधेरा
समझ पाए न
किसी के दिल को

अहंकार से चूर है
तन मन में बेसब्री है
मृगतृष्णा के मोह में
सुध बुध खोकर बैठी है

चंचल मेरा बचपन था
अब चंचल मेरा मन है
अस्थिरता जीवन में है ऐसी
सोच सोच घबराता है

हार निराशा सब है अपने
साधारण मन के असाधारण सपने
सोच विचार की असामान्य सी सिमा
गीत बन के निकले है इनमे

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