रंग-बिरंगा अहसास

जाने कितनी आँखें ख़ुशी से भरी थी
जाने कितनी बातें लबों पे आकर रह गई थी
एक ऊर्जा शरीर में सैलाब सी होकर भी शांत थी
एक पल उसके आने की आहट में रुका हुआ था

एक छवि तो रोज़ आँखों में देखता हूँ उसकी
आज हकीकत में देख रहा था,
सब शून्य सा होकर वक्त को समेट लिया था

जानता हूं दर्पण के परे उस दुनियाँ को मैं छू नहीं सकता
पर, इतना काबिल क्यों नहीं हुआ दिल तू अब तक
कि खुद ही की धड़कन को रोक नहीं सकता |

ओ सपने की दुनिया में जीने वाले,
ख्वाबों के शीशमहल को तोड़ नहीं सकता

ना मासूम सा दिल है तेरा
ना मन तेरा इतना सफेद
क्यों बात करता है फिर मीरा राधा के मोहब्बत की

ये नहीं है कोई रंगमंच
तेरी कल्पना का शीशमहल दिखाने का
ये नहीं है कोई ख़त या चिट्ठी
जो कागज़ के फूल बनकर तुम तक पहुचाने का

बस यूँ ही दशक बीत जायेंगे
तुम हसती रहना , मुस्कुराती रहना
गाती रहना , गुनगुनाती रहना
ऐ दिल , तुम उनको अपनी रंगींन दुआ में रखना
उसकी खुशियों की दुआओं में खुद को उलझाए रखना

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