धर्मनिरपेक्ष भारत

शब्द हिंदी ने दिए
अल्फ़ाज़ उर्दू ने
प्यार हिंदी ने दिया
मोहब्बत उर्दू ने

हम यूँ क्यों नहीं करते
एक दूजे की खामियों को बयां कर
उनके उपाय ढूंढे
हम एक दूजे की अच्छाइयों को अपनाये
हम क्यों विविधता को न अपनाये
सीखे समझे खुद को विज्ञानं से अवगत कराएं

हम क्यूँ बस बहाने ढूंढ़ते है
अपनी ऐंठ सीधी करने को
हम क्यों बहकावे में आते है
अनजानी -सुनी बातों को समझने के बजाए
उनमे उलझते जाते है

जलन, द्वेष, क्लेश, अपवित्रता
किसके मन में नहीं है ?
हम क्यों भूल जाते है
हम इस धरती के लिए बस एक जीव समान है

कौन है यहाँ जिसका मन दूध सा सफेद है
हर चाँद में रौशनी है
हर चाँद खूबसूरत है
पर दाग से कौन है रिहा

फिर क्यों बैर फैलाते है
मन को मटमैला बनाते है
एक दूजे के सहारे बनने के बजाए
क्यूँ एक दूजे को भटकाते है

“मैं सही हूँ” इस अहंकार में
जिंदगी की अपार खुबसुरती बस बिगाडे चले जाते हो

अनेकता में एकता का ज्ञान सिर्फ किताबी है
विद्यालय के वो अध्याय की सीख तो
हम चंद महीनो में भूल जाते है |

4 thoughts on “धर्मनिरपेक्ष भारत”

Leave a comment