बेवजह परवाह

मौसम धुंआ धुंआ सा था
हवा में कुछ ज्यादा ही नमीं थी
पिछली बार बस झलक ही देखी थी
तब से एक छवि थी
दिल के किसी कोने में

इस बार सामने ही आ गए
मन में एक तूफ़ान सा उठा और गहरा सन्नाटा छा गया

कशिश थी या सपनों में से निकली कोई छवि
ना प्यार आया, ना इश्क
बरसो से विचलित मन शिथिल हो गया
पहली बार किसी का दोस्त बनने की इच्छा ज़ाहिर हुई

बिन प्रीति के
बिन मुहब्बत के
ना बैरागी
ना अनुरागी
बस परवाह हुई तेरी
एक दोस्त की तरह

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