एक खून उबाल भर रहा हैआहिस्ता आहिस्ता । एक जुनून लहू में भर रहा हैआहिस्ता आहिस्ता । सच बोलना सबसे आसान होता हैपर पूंजीपतियों की इस बनावटी दुनियां में, यह एक अपराध होता है ।इसे जलन, द्वेष, अंधविश्वास से सींचकर अपनी ऐंठ चलाना ये इनका एकमात्र व्यवसाय है । पाठशाला की किताबों से शहर के… Continue reading Doomsday Clock
Author: avinamaurya
आत्मविश्वास से विहीन
ज्ञान और विज्ञान में ,जीत और हार में, कला और काबीलियत में,सब में , सब से ... पीछे खुद को पाता हूं। रोता है मन मेरा भी, की थोड़ा और उछल कर उस डाली को छू लूं कद में ख़ुद को कम पाता हूं कोशिश हज़ार करूं हर बार किसी न किसी से पीछे रह जाता हूं कुछ लोग समझाते… Continue reading आत्मविश्वास से विहीन
कभी समय के साथ ना चल पाया
कच्ची उम्र में मोहब्बत कर बैठा अब दिल लगाने की उम्र निकल गईसमय के साथ ना चलना आया इसे... किताबों के बोझ से घुट–घुट गुज़ारे वो बचपनअब शब्द रास आए तो सीखने की उम्र निकल गईसमय के साथ ना अब भी चलना आया इसे... जब दिल लगा तो साहस न थाअब संगी–साथी ढूंढने की उम्र निकल… Continue reading कभी समय के साथ ना चल पाया
बेवजह परवाह
मौसम धुंआ धुंआ सा थाहवा में कुछ ज्यादा ही नमीं थीपिछली बार बस झलक ही देखी थीतब से एक छवि थीदिल के किसी कोने में इस बार सामने ही आ गएमन में एक तूफ़ान सा उठा और गहरा सन्नाटा छा गया कशिश थी या सपनों में से निकली कोई छविना प्यार आया, ना इश्कबरसो से… Continue reading बेवजह परवाह
घाटी – पहाड़ी के रंगरेज़
ऐ रंगरेज़ क्या घोला रंग तुमने इसमेंरंग से बेरंग हो गया तू तेरे सपनों के शहर मेंविष्व के सैलानी भूले भटकेतेरे आँगन आके सुकून पाते थे क्यूँ तू इनकी बातों में आकरअपनी विविधता की ताकत को कमज़ोरी बना बैठा | हिमशृंगों की हवाहिमालय की चोटीउसकी धुप सेउसकी हवा सेये हराभरा शहररौशन था तारे सितारों की… Continue reading घाटी – पहाड़ी के रंगरेज़
रंग-बिरंगा अहसास
जाने कितनी आँखें ख़ुशी से भरी थीजाने कितनी बातें लबों पे आकर रह गई थीएक ऊर्जा शरीर में सैलाब सी होकर भी शांत थीएक पल उसके आने की आहट में रुका हुआ था एक छवि तो रोज़ आँखों में देखता हूँ उसकीआज हकीकत में देख रहा था,सब शून्य सा होकर वक्त को समेट लिया था… Continue reading रंग-बिरंगा अहसास
मैं कौन हूं
मैं एक चलचित्र का खोया हुआ सा किरदार हूंमैं उस किरदार को एक दिन परदे पर देखता हूंऔर फिर कुछ सौ दिनों तकउस किरदार के सांचे से बाहर नहीं आता मैं Jordan का टूटा हुआ दिल हुं मैं Veera की पक्की चाहत और कच्ची कोशिश हुं मैं Shiuli और Dan के बीच हुई अनकही बात हुंमैं Ved… Continue reading मैं कौन हूं
राजा, प्रजा और पूंजीपति
एक खून उबाल भर रहा हैआहिस्ता आहिस्ता।एक जुनून सा इश्क़ दिल में उतर रहा हैआहिस्ता आहिस्ता।सच बोलना कितना आसान होता है ।किंतुपूंजीपतियों की बनावटी दुनियां मेंयह एक अपराध होता है। हर दिल प्यार का भूखा है, पूर्ण सत्य ही सबसे बड़ी पूजा है - नैसर्गिक सत्य, कोई कहानी नहीं ।जैसे विज्ञान सिर्फ तथ्य रखता है, कोई… Continue reading राजा, प्रजा और पूंजीपति
तमाशा
ये देश है साहब।सर्कस की तरह चलाओगे तो,जनता को भी तमाशा देखने की आदत लग जाती है।फिर तमाशा आप की भावनाओं का ही क्यों ना हो,तमाशे से भुख तो नहीं, पर मन खूब भरता है। बहुत खूब कहा था एक किरदार ने,अंग्रेज़ भारत पर इतने वर्षो तक शाषन कैसे कर पाए,ना भाषा आती था ,… Continue reading तमाशा
Selling Unnatural Suffering – Humans
Disclaimer: As usual, this post is also DEPRESSING. Read it only if you can endure the storm of uncomfortable emotions. Let's start the journey of Pity. Isn't it ironic that in a densely populated country of the world, in a densely populated city, living in between crowds, and people everywhere yet I feel lonely? I am… Continue reading Selling Unnatural Suffering – Humans
